11 वर्षीय मनीष स्कुल में छठीं क्लाय में पढता है। उसके पिताजी पत्थर घड़ाई का काम करते थे। जिससे उन्हे सिलिकोसिस की बीमारी हो गयी थी। इसी बिमारी के साथ ही कोरोना महामारी के चलते काम की कमी भी हो गयी थी। अपने स्वास्थ्य के साथ में जैसे-तैसे परिवार का गुजारा चला रहे थे। कारोना के चलते सभी स्कुल व कॉलेज बंद थे। पढाई कागजों में सिमट गयी थी। इसी में मनीष को स्थानीय व्यक्ति के द्वारा मनीष को अपने साथ जैसलमेर काम पर चलने का कहा गया। मनीष भी घर में रह-रहकर परेषान हो गया था। वो भी चुपचाप बिना मां-बाप को बताये काम पर दिनांक 10/9/2021 को चला गया।
वहां जाने पर उसको समझ में आया कि घर क्या होता है, और काम क्या। होटल मालिक सुबह 7 बजे से रात की 12 बजे तक काम करवाता था। सुबह उठने में लेट हो या काम में गल्ती, मालिक उसकी पिटाई कर देता था। उसने अपने यहां के स्थानीय व्यक्ति को घर भेजने का कहा। परन्तु वो बोला अब आ गये, तो थोड़ा दिन रुककर, पगार लेकर जाना। परन्तु ना तो पगार मिली और ना ही घर आने का मौका ही। ऐसे में फरवरी माह में पिता पुछता हुआ गोगुन्दा से जैसलमेर होटल पर पहुंचा। और मालिक से बच्चे को भेजने का कहने लगा। मालिक ने कहा कि अभी सिजन है, मैं बच्चे को नहीं भेज सकता। और पिता को होटल से रवाना कर दिया।
पिता अपने बच्चे के बिना लौटना नहीं चाहता था। ऐसे में गांव के जानकार से पुछने पर उसने लेबरलाइन पर षिकायत करने का कहा। उसने उसी समय लेबरलाइन पर सम्पर्क करके मदद की मांग की गयी। लेबरलाइन के द्वारा उसी समय कलेक्टर ऑफिस में षिकायत भेजी गयी। चुंकि उस दिन शनिवार था। वहां से स्थानीय थाने को मामला भेज दिया। उन्होंने कार्यवाही करके, बच्चे को छुड़ाया। अगले दिन रविवार को मनीष को शेल्टर होम में रखा गया। पिता को पुनः होटल में छोड़ दिया गया। सोमवार को बच्चे के बयान बाल कल्याण समिति के समक्ष करवाकर, बच्चे को पिता के सुपुर्द किया गया व गांव लौटने का कहा गया।
चुंकि बस का समय बाकी होने से पुलिस द्वारा इन दोनों को होटल में ही छोड़ दिया गया। मालिक ने पुलिस के जाते ही, बच्चे और पिता को एक कमरे में बंद कर दिया। और उन्हे मारा। इसी बीच में बाहर किसी व्यक्ति के आ जाने से मालिक कमरे से बाहर निकला। पिता जैसे-तैसे वहां से मिलो पैदल चलके, बाहर आया। किसी वाहन चालक की नज़र पड़ने पर, उसने उसको गांव भिजवाया। इधर पिता के भागने पर मालिक ने बच्चे को भी अकेले बस में बैंठाकर गांव भेज दिया। बच्चा गांव तो लौट गया पर उसके साथ इन 5 महीनों की कढवी याद हमेषा रहेगी।
लेबरलाइन के द्वारा इस प्रकरण में पुलिस में बच्चें के साथ किये गये दुर्व्यवहार पर बाल श्रम, किषोर न्याय व अन्य में प्रकरण तो दर्ज करवाया गया। वहीं एक अन्य रिपोर्ट पिता के साथ में किये गये अत्याचार पर अनुसूचित जाति व जनजाति अधिनियम व भारतीय दंड संहिता में लिखवायी गयी। परन्तु कानून की कार्यवाही में समय लगता है। ऐसे में देानों पिता-पुत्र पुरी तरह से न्याय व्यवस्था पर निर्भर है।
लेखिका का परिचय
डिम्पल आजीविका ब्यूरो के लीगल ऐड एंड मीडीएशन सेल (लीड) में कार्यरत हैं। लीड सेल का मुख्य काम प्रवासी मजदूरों को कानूनी सहायता प्रदान करना है। इसके साथ -साथ यह सेल मजदूरों को कानूनों से जुडी महत्त्वपूर्ण जानकारी पहुँचाने और उनको कानूनी रूप से सशक्त बनाने का काम भी करती है।