Work Fair and Free Foundation

लेबर नाका के दृश्य प्रस्तुतिकरण के लिए चित्र CategoriesMigrantscape

कोरोना के बाद काफी कुछ पटरी पर आ गए है लेकिन अभी दिहाड़ी मजदूरों की ज़िंदगी पटरी पर नहीं आयी है

मुंबई जहाँ हमेशा काम ठीक-ठाक चलता था लेकिन अभी काम की स्थिति इतनी अधिक ख़राब हो गयी कि वर्कर को महीने में 10 से 15 दिन ही काम मिल रहा है, उसमे भी उनको काफी कम रेट पर काम करना पड़ रहा है. बाजार में आयी मंदी को समझने के लिए दिहाड़ी मजदूरों से बात की, वहीं उनके नज़रिये से काम में आयी मंदी को जानने की कोशिश की। समीर (नाम बदल दिया हैं) मुंबई में निर्माण कार्य में मिस्त्री का काम करते हैं. समीर बिहार के जमुई के रहने वाले हैं. उनको मुंबई में काम करते हुए 20 साल हो गए हैं. समीर ने बताया “कोरोना के बाद से काम बिलकुल ठंडा है. लॉकडाउन ने सभी की कमर तोड़ दी. हम जैसे गरीब आदमी पर तो दोहरी मार पड़ी है, एक तो काम नहीं, दूसरी मंहगाई अलग, अब बताओ गरीब आदमी क्या खाये, बस दाल रोटी चल रही इतना बहुत है. समीर ने बताया, नाके की हालत यह हो गयी है, अब सिर्फ 50 प्रतिशत लोगों को ही काम मिल रहा है. इसके बाद पैसा भी कम मिल रहा है. फ़रवरी तक यह काम ऐसे ही रहेगा, उसके बाद थोड़ा चलेगा, लेकिन मई, जून, जुलाई में भरपूर काम होता है”.

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Labour Wrap- April 2022

We carry out both in-house and commissioned research on a range of issues relating to the rights, entitlements and every day struggles of workers, especially, in the informal economy.  Our portfolio of work includes regional and sector level mapping exercises, issue-driven empirical studies, ethnographic case studies, and policy-centric enquiries. The use of an intersectionality lens helps us explore how factors like caste, gender and ethnicity cut across labour markets in complex and dynamic ways.